Font by Mehr Nastaliq Web

चतुर गीदड़

chatur gidaD

अज्ञात

अन्य

अन्य

अज्ञात

चतुर गीदड़

अज्ञात

और अधिकअज्ञात

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा तीसरी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    (पहला दृश्य)

    (स्थान-तालाब का किनारा)

    मगरमच्छ — (तालाब की ओर देखते हुए, अपने आप से) तालाब की सारी मछलियाँ तो मैं धीरे-धीरे चट कर गया। अब क्या खाऊँ? कई दिन से खाने को कुछ भी नहीं मिला। मुझे बहुत भूख लगी है। आज वह गीदड़ भी तालाब पर पानी पीने नहीं आया।

    (कछुए का प्रवेश)

    कछुआ — कहो भाई मगरमच्छ, क्या हाल है? सब ठीक तो है? इतने उदास क्यों हो?

    मगरमच्छ — क्या बताऊँ मित्र। भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे हैं। 

    कछुआ — क्यों, क्या आज खाने के लिए मछलियाँ नहीं मिलीं?

    मगरमच्छ — मछलियाँ तो कब की समाप्त हो चुकीं। सोचा था कि गीदड़ मिलता तो आज का काम चलता। पर वह तो ऐसा चतुर है कि पकड़ में ही नहीं आता। 

    कछुआ — हाँ, गीदड़ को पकड़ना तो बहुत कठिन है।

    मगरमच्छ — मित्र! कोई ऐसा उपाय करो कि वह पकड़ में आ जाए। उसे खाकर आज मैं अपनी भूख मिटा लूँगा। मैं तुम्हारा बहुत उपकार मानूँगा।

    कछुआ — अच्छा! तुम कहते हो तो चला जाता हूँ। किसी तरह गीदड़ को इधर लाने का प्रयत्न करता हूँ। (कुछ सोचकर) लेकिन इसके पहले तुम एक काम करो। (कान में कुछ कहता है।)

    मगरमच्छ — ठीक है ठीक है। मैं ऐसा ही करूँगा।

    (दूसरा दृश्य)

    (एक ओर मगरमच्छ साँस रोके मरा हुआ सा पड़ा है और कछुआ पास खड़ा है।)

    कछुआ — (दूर से गीदड़ को आते हुए देखकर) हाय! अब मैं क्या करूँ? मेरे प्यारे मित्र को न जाने क्या हो गया। अचानक उसके प्राण निकल गए। अब तो मैं बिलकुल अकेला रह गया

    (गीदड़ का प्रवेश)

    गीदड़ — क्या है भाई कछुए? क्यों रो रहे हो?

    कछुआ — मेरा प्यारा मित्र मगरमच्छ स्वर्ग सिधार गया। अब दुनिया में मेरा कोई नहीं रहा।

    गीदड़ — क्या कहा? मगरमच्छ मर गया? (अपने आप से) अब तो मैं निश्चिंत होकर तालाब का पानी पी सकता हूँ। उसके डर से मैं कई बार प्यासा ही रह जाता था। 

    कछुआ — क्या कहा, क्या कहा?

    गीदड़ — नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं, यह तो बड़े दुख की बात है। मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ।

    कछुआ — आओ, उस पर कुछ सूखे पत्ते डालकर उसे ढाँप दें। देखो, मरा पड़ा है।

    गीदड़ — (डरते-डरते कुछ पास जाकर, धीमे स्वर से) अरे, यह तो बिलकुल शांत है। नहीं, नहीं (ऊँचे स्वर में) यह तो साँस ले रहा है। भाई कछुए! क्या यह सचमुच मर गया है?

    कछुआ — हाँ हाँ! देखते नहीं, यह मरा पड़ा है।

    गीदड़ — पर भाई, मैंने तो सुना है कि मर जाने पर मगरमच्छ की पूँछ हिलती रहती है। लगता है, अभी यह पूरी तरह नहीं मरा।

    कछुआ — नहीं भाई, यह बिलकुल मर गया है। 

    (तभी मगरमच्छ अपनी पूँछ हिलाने लगता है।)

    गीदड़ — (भागकर दूर जाते हुए) ओह! अपने मित्र को देखो, अपने मित्र को देखो।

    कछुआ — (ऊँचे स्वर में) खोल दो आँखें। भाग गया गीदड़ तुम बिलकुल मूर्ख हो। तुम उस चतुर गीदड़ की चाल में आ ही गए। अब उसे पकड़ना कठिन है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : वीणा (पृष्ठ 63)
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए