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दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : सात

dusri golmez parishad mein gandhi ji ke saath ha saat

घनश्यामदास बिड़ला

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दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : सात

घनश्यामदास बिड़ला

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    5 सितंबर, 31

    'राजपूताना जहाज़’

    भोपाल ने महात्मा जी को बुलाकर कहा कि हिंदू-मुसलमान—समस्या सुलझाने के लिए आप पृथक् निर्वाचन स्वीकार कर लें। महात्मा जी ने कहा कि तो मुझे पृथक् निर्वाचन से शिकायत है, संयुक्त निर्वाचन का मोह हैं, किंतु मैं अंसारी के बिना कुछ भी करूंगा। कहते थे नवाब को यह बुरा-सा लगा। गांधी जी ने कहा कि, अपने मित्रों से मैं हरगिज़ बेवफ़ाई नहीं करूंगा। अंसारी के पीठ-पीछे मैं कोई निर्णय नहीं करना चाहता। भोपाल ने कहा कि अंसारी को कैसे बुलावे? महात्मा जी ने कहा कि लंदन जाकर उद्योग करो, मैं तो कर ही रहा हूँ।

    दो घंटे तक फिर मेरे और महात्मा जी के बीच निजी राजनीतिक बातें हुई। मेरा यह तो अनुमान है कि महात्मा जी की मांग तो पूरी होने वाली नहीं है, किंतु इतना मिल जाएगा, जिससे अन्य लोग संतुष्ट हो जाएँ। महात्मा जी कहते हैं, यह भी अच्छा है। कहते थे, मेरी दूसरी लड़ाई ज़मीदारों, धनिकों राजाओं से होगी, किंतु वह लड़ाई मीठी होगी।

    रात की प्रार्थना में अंग्रेज़ भी आते है अधिक नही सिर्फ़ 5-7। एक मुसलमान ने पूछा—“प्रार्थना से फ़ायदा?” महात्मा जी ने—कहा—“मुझमें कुछ अक्ल मानते हो, तो समझ लो कि लाभ के लिए ही प्रार्थना करता हूँ।” महात्मा जी ने बताया कि उन्हें ईश्वर में विश्वास था, प्रार्थना में और पीछे उनको इसका ज्ञान हुआ। अब यह हाल है कि उनके शब्दों में “मुझे रोटी मिले तो मैं व्याकुल नहीं होता, पर प्रार्थना के बिना तो पागल हो जाऊँ।” उन्होंने कहा कि “मेरा सारा-का-सारा जीवन प्रार्थनामय ही है और इसका सुख इस मार्ग में जाने से ही अनुभव हो सकता है। बुद्ध, ईसा, मुहम्मद तीनों ने प्रार्थना की सार्थकता स्वीकार की है। मैं ईश्वर का दर्शन नहीं करा सकता। ईश्वर अनुभवमय है, इसलिए अनुभव से ही जाना जा सकता है। प्रार्थना द्वारा उसका अनुभव होता है। जो अनुभव लेना चाहता है, जिसे शांति की आवश्यकता है, वह प्रार्थना करे।”

    स्रोत :
    • पुस्तक : डायरी के कुछ पन्ने (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : घनश्यामदास बिड़ला
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1958

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