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दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : दस

dusri golmez parishad mein gandhi ji ke saath ha das

घनश्यामदास बिड़ला

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दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : दस

घनश्यामदास बिड़ला

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    9 सितंबर, 31

    ‘राजपूतान' जहाज़’

    अभी-अभी मौलाना मुझसे बाते कर गए है। मैंने पूछा कि जनाब की सेहत का क्या हाल है? कहने लगे—“जिंदा तो हूँ।” मैंने कहा कि आप गए यह ख़ुशनसीबी है। अब लंदन पहुँचने से पहले इस झमेले को तय कर लीजिए; वर्ना दोनों कौमो की बर्बादी होने वाली है।” मौलाना ने कहा—“छोटा-सा मसला है, गांधी जी के हाथ में है।” मैंने कहा कि “सब कुछ आपके हाथ में है।” नवाब साहब भी साथ है, अंसारी को बुलवा ले और बैठकर तसफिया कर ले।” पर होना-जाना कुछ है नहीं।

    भोपाल ने फिर गांधी जी को बुलवाया। शौकतअली भी मौज़ूद थे। 4 घंटे तक बातचीत हुई, पर कोई नतीजा निकला। महात्मा जी ने पूछा कि तुम जो कुछ कहते हो उसे मैं मान भी लूँ, तो तुम्हारा रुख लंदन में राष्ट्रीय मांगों के प्रति क्या होगा? शौकतअली ने कहा कि मैं तो सरकार का ही साथ दूँगा।

    दूसरे दिन मालवीयजी को भी भोपाल ने बुलवाया। आर. टी. सी. में मालवीय जी का क्या रुख रहेगा, इसीकी चर्चा थी। पंडित जी ने कह दिया कि “जीवन-मरण का प्रश्न है, मैं लंदन इसलिए नहीं आया कि पौने सोलह आना लेकर जाऊँ। गांधी जी का हर्गिज़ साथ छोड़ूँगा। “भोपाल ने कहा—“फिर तो बात टूटेगी।” पंडित जी ने कहा कि, चाहे जो हो।

    लंदन से एड्रूज़का तार आया है कि सरकार की राय है कि महात्मा जी फोकस्टन (लंदन से 80 मील पर एक शहर) मे उतरकर वहीं से बजाए रेल के मोटर में आवें। महात्मा जी ने तार दे दिया कि मुझे कोई आपत्ति नही है। लंदन मे बहुत भीड़ होने की संभावना है। सरकार नहीं चाहती कि ऐसा स्वागत हो, इसलिए यह चाल है।

    सप्रूका भी तार आया है कि रविवार 13 की रात को आपको प्रधान एवं अन्य प्रतिष्ठित आदमियों से मिलना है। महात्मा जी कहते थे कि उसी रात को मैं तो अपना दाँव फेंक दूँगा और फिर आवश्यकता होगी तो दूसरे स्टीमर से ही लौट आऊँगा। उनके स्वागत को रोकने के लिए उन्हें मोटर द्वारा बुलाया गया है, इससे तो मुझे नीयत साफ़ नहीं दीखती।

    स्रोत :
    • पुस्तक : डायरी के कुछ पन्ने (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : घनश्यामदास बिड़ला
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1958

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