‘समुद्र मंथन’ में नज़र आया चित्तरंजन त्रिपाठी का निर्देशकीय कौशल
रहमान
27 अगस्त 2024
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित कर रहा है। यह समारोह एनएसडी रंगमंडल की स्थापना के साठ वर्ष पूरे होने के अवसर पर किया जा रहा है। समारोह में 9 अलग–अलग नाटकों की कुल 22 प्रस्तुतियाँ होनी हैं। समारोह का पहला नाटक 24 और 25 अगस्त के रोज़ खेला गया। यहाँ प्रस्तुत है समारोह के उद्घाटन की रपट और पहले नाटक—‘समुद्र मंथन’—की समीक्षा :
नाटक ‘समुद्र मंथन’—विष्णु पुराण के प्रथम भाग में वर्णित भारतीय पौराणिक साहित्य की अतिमहत्त्वपूर्ण कथा है। भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र में इसे विश्व का प्रथम नाट्य-प्रयोग माना गया है, जो भरत मुनि द्वारा लिखे गए रूपकों में ‘समवकार’ की श्रेणी में आता है।
कहानी के अनुसार, ऋषि दुर्वासा देवराज इंद्र पर कुपित हो जाते हैं और उन्हें हीन और शक्तिहीन होने का शाप देते हैं। इस अवसर का लाभ उठाते हुए—राक्षस-राज बलि इंद्र को हरा देता है और स्वर्ग के लोगों पर अपना वर्चस्व स्थापित करता है। दैत्यों द्वारा देवताओं पर विजय प्राप्त करने से राक्षस और राक्षसी प्रवृत्तियाँ पूरी सृष्टि पर हावी होने लगती हैं।
ब्रह्मांड के जनक भगवान ब्रह्मा के कहने पर, इंद्र सहित सभी देवता ब्रह्मांड की रक्षा और उसके अस्तित्व की पुनर्स्थापना के लिए परमपिता परमेश्वर भगवान श्री विष्णु से प्रार्थना करते हैं। देवताओं की व्यथा सुनकर सृष्टि के पालनहार नारायण उन्हें अपने क्षीर सागर का मंथन करने का आदेश देते हैं, ताकि ब्रह्मांड से लुप्त हो चुके सत्य और सार को पुनः प्राप्त किया जा सके, लेकिन इसके लिए न केवल देवताओं के पराक्रम बल्कि राक्षसों की शक्ति यानि उनकी असुरी प्रचंडता की भी आवश्यकता थी।
नाटककार आसिफ़ अली हैदर ने एक महाकाव्य को बहुत ही ख़ूबसूरती से समसामयिक घटनाचक्र से जोड़ने का काम किया। नाटक की शुरुआत ही इस बात से होती है कि हमें आख़िरकार नाटक से क्या मिलेगा? हम अपने जीवन के अन्य ज़रूरी विषयों पर मंथन करने के जगह कला, साहित्य और नाटकों पर मंथन क्यों करें? जिसका उत्तर हमें नाटक के अंत में मिलता है।
निर्देशक चित्तरंजन त्रिपाठी का निर्देशकीय कौशल पूरे नाटक में बार-बार उभर कर आता है। एक बड़े से स्क्रीन के माध्यम से नाटक में जिन मोहक दृश्यों को मंच पर उकेरा गया, वे सभी दृश्य दर्शकों की स्मृति में सदा के लिए जगह बना लेते हैं। मंच-परिकल्पना और बाह्य-संगीत नाटक को और रोमांचक और गतिशील बनाते हैं, जिससे दर्शकों को पलक झपकने तक का समय नहीं मिलता।
नाटक जिस ऊर्जा से आरंभ होता है, वही ऊर्जा नाटक के अंतिम दृश्य तक बरकरार रहती है और इसका श्रेय रंगमंडल के सभी अभिनेताओं को जाता है। नाटक वर्तमान से शुरू होकर धीरे-धीरे पौराणिक कहानी की ओर अपना क़दम बढ़ाता है, और पुनः वर्तमान में लौटकर दर्शकों से सीधे संवाद करता है कि आख़िर हम आधुनिकता के इस दौर में आकर मंथन करना क्यों भूल गए? हम एक समाज और देश के रूप में अपने आने वाली पीढ़ी और पर्यावरण के लिए विचार क्यों नहीं कर रहे हैं? हम किस दुनिया की खोज में हैं? जिसके लिए हम अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ विचारों तक का समझौता कर रहे हैं।
नाटक ‘समुद्र मंथन’ स्पष्ट संदेश देता है कि जिस देश का राजा भोग-विलास में लीन होकर प्रजा को भूल जाता है, अपने देश के गुणीजनों का आदर नहीं करता है, उसका विनाश तय होता है। अगर हम अपने वर्तमान समाज पर चिंतन की एक दृष्टि डालते हैं तो हम पाते हैं कि आज हत्या, बलात्कार और अन्य जघन्य अपराध आम हो गए हैं। स्त्रियाँ, बच्चे और जानवर सुरक्षित नहीं है।
विकास के नाम पर हम इतनी तेज़ी से अग्रसर हैं कि उससे उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभाव को देखने का समय ही नहीं है। समुद्र मंथन से केवल अमृत ही नहीं, बल्कि विष भी निकला था जिसे महादेव ने अपने कंठ में धारण कर समस्त विश्व को उसके प्रकोप से बचाया। आज भी विकास के रास्ते में विष रूपी प्लास्टिक, केमिकल गैस और अन्य हानिकारक चीज़ें निकल रही हैं, जिससे मिट्टी, पानी और हवा दूषित हो रहे हैं। जिसका दुष्प्रभाव हम सब पर पड़ रहा है। इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? यह हम सबके लिए विचार का विषय होना चाहिए।
निर्देशक ने नाटक में आधुनिकता को समायोजित करते हुए उसकी पौराणिकता को बरक़रार रखा। नाटक ‘समुद्र मंथन’ एक महाकाव्य है और उसकी प्रस्तुति उसकी काव्यात्मकता की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखती है।
अभिनय, मंच-सज्जा, रूप-सज्जा, प्रकाश परिकल्पना, ध्वनि और संगीत-परिकल्पना बेहतर थी। संवाद अदायगी में अभिनेता और बेहतर कर सकते हैं।
नाटक से पूर्व उद्घाटन-सत्र में मंच पर उपस्थित अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह का विधिवत उद्घाटन किया। उसके उपरांत संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने अपने अभिभाषण में कहा :
‘‘भारत अब पुनः सुपर पावर बनने जा रहा है और संपूर्ण विश्व हमारी ओर देख रहा है। इस बार इस महाशक्ति बनने की धुरी कला और संस्कृति है। भारतवर्ष की संस्कृति हज़ारों साल पुरानी है। भारत विभिन्न संपदाओं से परिपूर्ण देश है, जिसमें कला और संस्कृति भी मुख्य बिंदु में शामिल हैं। भारत हमेशा अपनी सांस्कृतिक विरासत की वजह से सुंदर रहा है, जबकि हमारे देश पर आक्रांताओं ने समय-समय पर अलग-अलग तरीक़ों से हमला किया। वर्तमान समय के वैचारिक हमलों के बाद भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसे संस्थानों की बदौलत हमारी सांस्कृतिक विरासत बची हुई है और दिन-प्रतिदिन समृद्ध हो रही है।
उन्होंने आगे कहा कि संसार का कोई भी देश केवल आर्थिक मज़बूती या फिर मज़बूत सेना और आधुनिक हथियार के दम पर सुपर पावर नहीं बन सकता। उसके लिए स्नेह और आदर अर्जित करना पड़ता है, जिसके बिना सुपर पावर बनना मुमकिन नहीं है। आदर और प्रेम अर्जित करने की डोर कला से बँधी हुई है, जोकि भारत देश के पास है। इसे एनएसडी जैसे संस्थान सहेज रहे हैं।
पद्मश्री राम गोपाल बजाज ने अपने अभिभाषण में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में बिताए अपने दिनों को याद करते हुए कहा :
“आसमान और इतनी आकृतियाँ,
इतने चेहरे इतनी स्मृतियाँ,
जगत के पार पहुँचने की साधना, कल्पना, प्रतिज्ञा
नहीं मालूम आंगिक, वाचिक या सात्विक से बँधेगी।”
एनएसडी—शिक्षण के साथ, शिक्षा के बाद उसका प्रयोग समाज को बेहतर बनाने में कैसे करे? उसके लिए साधना की आवश्यकता है। जीवन का अभिनय नहीं हो सकता है। जीवन की कामना हो सकती है।
रंगमंच और फ़िल्म अभिनेता गोविंद नामदेव अपने अभिभाषण में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और रंगमंडल के दिनों को याद करते हुए कई बार भावुक हुए। उन्होंने कहा कि आज सच में एक अंजानी ख़ुशी का एहसास हो रहा है। ग्यारह वर्ष जिस एनएसडी रंगमंडल में अपने अभिनय को निखारा-सँवारा वह आज अपने रंग यात्रा के साठ वर्ष पूरे कर रहा है। यह रोमांचित करने वाली अनुभूति एक सौ सत्तर फ़िल्में और देश के नामचीन अभिनेता और निर्देशकों के साथ काम करने से कहीं ज़्यादा अद्भुत है।
गोविंद नामदेव ने अपने गुरु इब्राहिम अलकाजी और राम गोपाल बजाज के साथ की सुखद रंग यात्रा सहित अन्य कई कहानियों को दर्शकों के सामने रखा।
उमा नंदूरी (Joint Secretary Ministry of Culture) ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अपने जुड़ाव और समाज में कला के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एनएसडी जैसे संस्थान को सहेजना, उसे समृद्ध करना हम सबका दायित्व है। हमें एक होकर इस दिशा में काम करना चाहिए।
चित्तरंजन त्रिपाठी (निदेशक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) ने साठ वर्ष की इस अविश्वसनीय रंग यात्रा के लिए सभी लोगों का आभार व्यक्त किया। तत्पश्चात हीरक जयंती से जुड़ी मुख्य बिंदुओं की जानकारी सबसे साझा की, जिसमें तीन सौ किलोमीटर पदयात्रा को रोककर नाट्य समारोह और नि:शुल्क नाट्य कार्यशाला आयोजित करना शामिल है।
उन्होंने भारत रंग महोत्सव—जो वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा नाट्य महोत्सव है—की जानकारी देते हुए कहा कि बीआरएम के आख़िरी दिन हम लोगों ने पूरे भारत में एक साथ एक ही समय में 1588 जगहों पर नाटक खेलकर विश्व रिकॉर्ड क़ायम किया है। हमें और हमारे देश को कलात्मक रूप से और समृद्ध होने के लिए इसे एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ से मुख्य बिंदु तक पहुँचने का एक कठिन सफ़र तय करना होगा।
अंत में रंगमंडल चीफ़ राजेश सिंह ने आने वाली सभी प्रस्तुतियों को लेकर विस्तार से जानकारी साझा की।
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