यासुनारी कवाबाता की कहानियाँ
ईज़ू नर्तकी
जैसे ही सड़क दर्रे की तरफ़ मोड़ लेने वाली थी कि पहाड़ी की तलहटी से बारिश का एक झपेटा देवदार के वन को सफ़ेद करता हुआ मेरी तरफ़ आया। मैं उन्नीस साल का था और ईजू प्रायद्वीप की यात्रा अकेले कर रहा था। मैंने एक विद्यार्थी के से ही कपड़े पहन रखे थे। गहरे रंग
धूप का टुकड़ा
मेरी आयु उन दिनों चौबीस वर्ष की थी। पतझड़ का मौसम था। सागर तट की एक आरामगाह में मेरी भेंट उस लड़की से हुई। यह प्यार की शुरुआत थी। उस लड़की ने अकस्मात् अपना सिर ऊपर उठाया और फिर अपने चेहरे को किमोनो की आस्तीन के पीछे छिपा दिया। जब मेरा ध्यान उसकी इस
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere