यशपाल की कहानियाँ
दूसरी नाक
लड़के पर जवानी आती देख जब्बार के बाप ने पड़ोस के गाँव में एक लड़की तजवीज़ कर ली। लेकिन जब्बार ने हस्बा की लड़की शब्बू को जो पानी भर कर लौटते देखा, तो उसकी सुध-बुध जाती रही। जैसे कथा कहानी में कहा जाता है कि शाहज़ादा नदी में बहता हुआ सोने का एक बाल
लखनवी अंदाज़
मुफ़स्सिल को पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूँकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड
दुःख का अधिकार
(मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम ज़रा नीचे झुककर समाज की निचली
परदा
चौधरी पीरबख़्श के दादा चुंगी के महकमे में दारोग़ा थे। आमदनी अच्छी थी। एक छोटा, पर पक्का मकान भी उन्होंने बनवा लिया। लड़कों को पूरी तालीम दी। दोनों लड़के एंट्रेंस पास कर रेलवे में और डाकख़ाने में बाबू हो गए। चौधरी साहब की ज़िंदगी में लड़कों के ब्याह और
मक्रील
गर्मी का मौसम था। ‘मक्रील’ की सुहावनी पहाड़ी। आब-ओ-हवा में छुट्टी के दिन बिताने के लिए आई संपूर्ण भद्र जनता खिंचकर मोटरों के अड्डे पर, जहाँ पंजाब से आने वाली सड़क की गाड़ियाँ ठहरती हैं—एकत्र हो रही थी। सूर्य पश्चिम की ओर देवदारों से छाई पहाड़ी की
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere