रोहित अनिल त्रिपाठी के बेला
मैं वीगन क्यों नहीं हूँ!
सड़क पर भीख माँगते किसी व्यक्ति से कभी पूछियेगा कि गाली सुनने के बाद उसे कैसा लगता है? फिर यही ख़ुद से पूछियेगा। दोनों सवालों के जवाबों में जो अंतर आए, उससे इस समाज का अंतर आपको पता लग जाएगा। आप पेट भर
‘हिन्दवी’ उत्सव में न जा पाए एक हिंदीप्रेमी का बयान
‘हिन्दवी’ अब दूर है। उसके आयोजन भी। जब दिल्ली में था तो एक दफ़ा (लखनऊ में ‘हिन्दवी’ उत्सव के आयोजन पर) सोच रहा था कि लखनऊ में क्यों नहीं हूँ? अब लखनऊ में बैठा सोचता हूँ कि ‘हिन्दवी’ के इस आयोजन के समय