पद्मसिंह शर्मा के रेखाचित्र
दिव्य प्रेमी मंसूर
'चढ़ा मंसूर सूली पर पुकारा इश्क़-बाज़ों को, व उसके बाम का ज़ीना है आए जिसका जी चाहे।' ***** 'शोर-ए-मंसूर अज़, कुजा वो दार-ए-मंसूर अज़ कुजा, ख़ुद ज़दी बांगे—अनलहक़ बरसर-ए-दार
मौलाना आज़ाद
अरबी फ़ारसी के पारदर्शी विद्वान्, उर्दू कविता को नए नेचुरल साँचे में ढालने वाले, उर्दू साहित्य के आदर्श आचार्य और सुप्रसिद्ध कवि शमसुल-उल्मा मौलाना मुहम्मद हुसैन आज़ाद जिस्म की क़ैद से आज़ाद होकर 22 जनवरी (सन् 1610 ई०) को स्वर्ग सिधार गए!! आज़ाद
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere