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मृगतृष्णा

नई पीढ़ी की कवयित्री। यात्रा और पत्रकारिता के संसार से संबद्ध।

नई पीढ़ी की कवयित्री। यात्रा और पत्रकारिता के संसार से संबद्ध।

मृगतृष्णा के बेला

18 अप्रैल 2025

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

एक मैं उन दुखों की तरफ़ लौटती रही हूँ, जिनके पीछे-पीछे सुख के लौट आने की उम्मीद बँधी होती है। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे समंदर का भार कछुओं ने अपनी पीठ पर उठा रखा हो और मछली के रोने से एक नदी फूट पड़े

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