जॉन गाल्सवर्दी की कहानियाँ
वह असफलताओं से खेलता रहा
ऋतु गर्म हो या ठंडी, अच्छी हो या बुरी, इससे अधिक निश्चित बात और कोई न थी कि वह लँगड़ा आदमी शहतूत की टेढ़ी-मेढ़ी छड़ी के सहारे चलता हुआ यहाँ से अवश्य गुज़रेगा। उसके कंधे पर लटकती हुई खपच्चियों की बनी हुई टोकरी में एक फटी-पुरानी बोरी से ढके हुए ग्रोंडसील
मोची
मैं उसे तब से जानता था, जब मैं बहुत छोटा था। वह मेरे पिताजी के जूते बनाता था। अपने बड़े भाई के साथ वह रहता था। छोटी-सी एक गली में दो दुकानों को मिलाकर एक दुकान में बदल दिया गया था, पर अब वह दुकान नहीं रही, उसकी जगह एक बेहद आधुनिक दुकान खड़ी हो गई है। उसकी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere