गोपालराम गहमरी के संस्मरण
पंडित प्रतापनारायण मिश्र की स्मृति में
स्व. भारतेंदु के समकक्ष कवि जिन पं. प्रतापनारायण मिश्र का संस्मरण लिख रहा हूँ वे जब मुझे चिट्ठी भेजते थे तब मोटो की तरह ऊपर "खुदादारमचेगमदारंभ" यह वाक्य लिखा करते थे। मिश्र जी उन्नाव जिले के बेल्थर गाँव के रहने वाले थे। बाद को कानपुर में आए। उनके
भारतेंदु हरिश्चंद्र
"जे सूरज ते बढ़ि गए, गरजे सिंह समान। तिनकी आजु समाधि पर, मूतत सियरा खान॥" —भारतेंदु मैं सन् 1879 ई में गहमर स्कूल से मिडिल वर्नाक्यूलर की परीक्षा पास करके चार वर्ष तक घर बैठा रहा। गाजीपुर जाकर अँग्रेज़ी पढ़ने का ख़र्च मेरी माता ग़रीबी के कारण नहीं
मेरे संस्मरण
(एक) बात बहुत पुरानी सन् 1894 ई. की है। पूरे तैंतालिस वर्ष बीत गए। आज भी उन पुरोहित जी का वीर-भेष आँखों के सामने आ खड़ा होता है जब मंडला प्रवास की बातें याद आ जाती हैं। उन दिनों पंडित मुन्नालाल पुरोहित के पिता पंडित बालमुकुंद पुरोहित मंडला के तहसीलदार
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere