संपूर्ण
परिचय
कविता14
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उद्धरण16
धर्मवीर भारती की कहानियाँ
गुलकी बन्नो
‘ऐ मर कलमुँहे!’ अकस्मात् घेघा बुआ ने कूड़ा फेंकने के लिए दरवाज़ा खोला और चौतरे पर बैठे मिरवा को गाते हुए देखकर कहा, “तोरे पेट में फोनोगिराफ़ उलियान बा का, जौन भिनसार भवा कि तान तोड़ै लाग? राम जानै, रात के कैसन एकरा दीदा लागत है!” मारे डर के कि कहीं घेघा
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere