भगवतीप्रसाद वाजपेयी की कहानियाँ
मिठाईवाला
एक बहुत ही मीठे स्वरों के साथ वह गलियों में घूमता हुआ कहता—"बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला।" इस अधूरे वाक्य को वह ऐसे विचित्र किंतु मादक-मधुर ढंग से गाकर कहता कि सुनने वाले एक बार अस्थिर हो उठते। उनके स्नेहाभिषिक्त कंठ से फूटा हुआ उपयुक्त गान सुनकर
उपहार
विमला खाना परोस रही थी। कमल बैठा पत्र लिख रहा था। वह सोचता था कि जब इसे समाप्त कर लूँगा, तब उठूँगा। देर ही क्या है, कुछ भी तो और अधिक नहीं लिखना है। बस, यही दो-तीन, हाँ दो ही पंक्तियाँ और लिखने को हैं कि फिर मैं हूँ और भोजन। और विमला मन-ही-मन झुँझला
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere