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भगवती चरण वर्मा

1903 - 1981 | सफ़ीपुर, उत्तर प्रदेश

भगवती चरण वर्मा की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 13

जीवन अविकल कर्म है, बुझने वाली पिपासा है। जीवन हलचल है, परिवर्तन है; और हलचल तथा परिवर्तन में सुख और शांति का कोई स्थान नहीं।

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निर्बल व्यक्ति की आहें संगठित होकर समुदाय द्वारा जनित क्रांति का रूप धारण कर सकती हैं।

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ईश्वर अनादि है, पर उस ईश्वर को, मैं दावे के साथ कहता हूँ, कोई नहीं जानता—वह कल्पना से परे है। वह सत्य है, पर इतना प्रकाशवान कि मनुष्य के नेत्र उसके आगे नहीं खुले रह सकते। उस सत्य को जानने का प्रयत्न करो, उस ईश्वर को पाने के लिए घोर तपस्या करो, पर सब व्यर्थ है—निष्फल है। यदि तुम ईश्वर को ही जान सको, यदि तुम्हारी कल्पना में ही वह अखंड और नि:सीम अनन्त का रचियता सके, तो फिर वह ईश्वर कैसा?

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जीवन का कार्यक्रम है रचनात्मक, विनाशात्मक नहीं मनुष्य का कर्तव्य है अनुराग, विराग नहीं।

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धर्म समाज द्वारा निर्मित है। धर्म ने नीतिशास्त्र को जन्म नहीं दिया है, वरन् इसके विपरीत नीति-शास्त्र ने धर्मं को जन्म दिया है।

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