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बंकिम चंद्र चटर्जी

1838 - 1894

समादृत बंगाली उपन्यासकार, कवि, निबंधकार और पत्रकार। राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' के रचयिता।

समादृत बंगाली उपन्यासकार, कवि, निबंधकार और पत्रकार। राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' के रचयिता।

बंकिम चंद्र चटर्जी की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

जो लोग सौंदर्य के उपभोग में उन्मत्त हैं, उनकी यंत्रणा कैसी है, इसका अनुभव मैं भोजन करने के लिए बैठने पर ही करता हूँ। मेरे जीवन में घोर दुःख यह है कि अन्न-व्यंजन थाली में रखते-रखते ही ठंडे हो जाते हैं। उसी प्रकार सौंदर्य-रूपी मोटे चावल का भात है, प्रेम-रूपी केला के पत्तल पर डालते ही ठंडा हो जाता है—फिर कौन रुचि से उसे खाए? अंत में वेश-भूषा-रूपी इमली की चटनी मिलाकर, ज़रा अदरक-नमक के क़तरे डालकर किसी तरह निगल जाना पड़ता है।

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लोग कहते हैं—दुष्ट के सारे ही काम अपराध होते हैं। दुष्ट कहता है— मैं भला आदमी हो जाता किंतु लोगों के अन्याय ने मुझे दुष्ट बना दिया है।

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