बालकृष्ण भट्ट के निबंध
कालचक्र का चक्कर
सच है—'अपना सोचा होत नहिं, प्रभु चेता तत्काल'— 'अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम्। शेषा जीवितूमिच्छन्ति किमश्चर्यमतः परम्॥' बराबर देख रहे हैं, आज यह गए, कल उनकी बारी आई, परसों उन्हें चिता पर सुला आये। पर जो बचे हुए है, उन्होंने यही मन में ठान रखा है
चंद्रोदय
अँधेरा पाख बीता, उजेला पाख आया। पश्चिम की ओर सूर्य डूबा और वक्राकार हँसिया की तरह उसी दिशा में चद्रमा दिखलाई पड़ा। मानो कर्कशा के समान पश्चिम दिशा सूर्य के प्रचंड ताप से दुखी हो क्रोध में आ इसी हँसिया को लेकर दौड़ रही है और सूर्य भयभीत हो पाताल में छिपने
विद्या के दो क्षेत्र
साहित्य और विज्ञान दोनों मानो विद्या के दो नेत्र हैं। जो साहित्य में प्रवीण है और विज्ञान नहीं जानता अथवा विज्ञान में पूर्ण पंडित है और साहित्य नहीं जानता, वह मानो एक आँख का काना है और जो दोनों में से एक भी नहीं जानता, वह अंधा है। विद्या 'विद्' धातु
बातचीत
इसे तो सभी स्वीकार करेंगे कि अनेक प्रकार की शक्तियों में, जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्यों को दी हैं, वाक्शक्ति भी एक है। यदि मनुष्य की और इंद्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों से अविकल रहती और वाक्शक्ति उसमें न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere