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शिकायत

shikayat

राही मासूम रज़ा

अन्य

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और अधिकराही मासूम रज़ा

    रात के बाद भी रात आती रही है अब तक

    कल का कुछ ठीक नहीं

    क्या पता

    रात ही जाए फिर इस रात के बाद

    ऐसा लगता है कि अब

    नींद के पेड़ पे ख़्वाबों का कोई फूल नहीं...

    आज की रात गुज़र जाने दो

    सुबह तक हम भी गुज़र जाएँगे

    बँध चुका रख़्ते-सफ़र

    ज़ख़्म

    ज़ख़्मों के निशाँ

    बेवफ़ाई का नमक

    सारे गहनाए हुए चाँदों का दर्द

    सारी जागी हुई रातों की थकन

    सारे टूटे हुए ख़्वाबों की चुभन

    दिल में उतरे हुए सारे नश्तर

    बँध चुका रख़्ते-सफ़र

    आरज़ुओं की मिठास

    थोड़ी-सी जीने की प्यास

    मेहरबाँ चेहरे के दिन का कोई पल

    चारागर ज़ुल्फ़ों की शब से कोई रौशन लम्हा

    चंपई वक़्त की ख़ुशबू में बसाई हुई ओस

    उसकी ज़ेबाई के सारे मौसम

    उसकी दिलदारी की हर रहग़ुजर

    बँध चुका रख़्ते-सफ़र

    तू भी रात गुज़र

    सुबह तक हम भी गुज़र जाएँगे

    हाँ

    मगर सुबह से कहना कि कोई जाग रहा था कब से

    नंगे सर

    आबला-पा

    उसकी तरफ़ भाग रहा था कब से

    हर नए मोड़ पर इक दर्द के सहरा के सिवा कुछ मिला

    हर जगह वादा-ए-फ़र्दा ही मिला

    वादा-ए-फ़र्दा के सिवा कुछ मिला

    दफ़्न करता हुआ हर नक़्शे-क़दम में किसी लम्हे का सफ़र

    अपने सीने में उगाए हुए उम्मीद के महताब कई

    जाग रहा था कब से

    नंगे सर

    आबला-पा

    उसकी तरफ़ भाग रहा था कब से

    हाँ

    मगर जागते रहने की भी हद होती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : ग़रीबे-शहर (पृष्ठ 42)
    • संपादक : कुँवरपाल सिंह
    • रचनाकार : राही मासूम रज़ा
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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