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चावल की रोटियाँ

chaval ki rotiyan

पी.औंग खिन

अन्य

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पी.औंग खिन

चावल की रोटियाँ

पी.औंग खिन

और अधिकपी.औंग खिन

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    पात्र-परिचय

    कोको : आठ साल का एक बर्मी लड़का, कुछ मोटा

    नीनी : नौ साल का बर्मी लड़का, कोको का दोस्त

    तिन सू : आठ साल का बर्मी लड़का, कोको का दोस्त

    मिमि : सात साल की बर्मी लड़की, कोको की दोस्त

    उ बा तुन : जनता की दुकान का प्रबंधक (इसका अभिनय कोई लंबे कद का लड़का नकली मूँछें और चश्मा लगाकर कर सकता है)

    हिंदवी


    (एक सादा कमरा, दीवारों पर बाँस की चटाइयाँ। एक दीवार के सहारे रखी अलमारी। अलमारी के ऊपर एक रेडियो, चाय की केतली, कुछ कप और ख़ाली गुलाबी फूलदान रखा है। कमरे के बीच फ़र्श पर एक चटाई बिछी है जिसके ऊपर कम ऊँचाई वाली गोल मेज़ रखी है। दो दरवाज़े। एक दरवाज़ा पीछे की ओर खुलता है और दूसरा एक किनारे की ओर। पंछियों के चहचहाने के साथ-साथ पर्दा उठता है। दूर कहीं मुर्ग़ा बाँग देता है। कुत्ता भौंकता है। कहीं प्रार्थना की घंटियाँ बजती हैं। को को आता है, जँभाई लेकर अपने को सीधा करता है।)

    कोको—माता-पिता धान लगाने खेतों में चले गए हैं। जब तक माँ खाना बनाने के लिए लौटकर नहीं आती। मुझे घर की देखभाल करनी है। हूँ...ऊँ....ऊँ...देखता हूँ माँ ने नाश्ते में मेरे लिए क्या बनाकर रखा है।

    (वह अलमारी की तरफ़ जाता है और उसे खोलकर देखता है। एक तश्तरी निकालकर देखता है कि चावल की चार रोटियाँ हैं। वह होंठों पर जीभ फेरता है और मुस्कुराता है।

    कोको—आहा...मज़ा आ गया। चावल की रोटियाँ। मेरी मनपसंद चीज़।

    (वह पेट मलता हुआ रोटियों को मेज़ पर रखता है और बैठ जाता है।)

    कोको—आज तो डट कर नाश्ता होगा।

    (वह एक रोटी उठाकर मुँह में डालने लगता है, तभी कोई दरवाज़े पर दस्तक देता है।)

    नीनी—कोको...ए कोको! दरवाज़ा खोलो। मैं हूँ नीनी।

    कोको—ग़ज़ब हो गया। यह तो भुक्खड़ नीनी है। उसकी नज़र में रोटियाँ पड़ीं तो ज़रूर माँगेगा। मैं इन्हें छिपा देता हूँ।

    नीनी—दरवाज़ा खोलो कोको, तुम क्या कर रहे हो? इतनी देर लगा दी।

    कोको—मैं इन्हें कहाँ छिपाऊँ? कहाँ छिपाऊँ? (रेडियो की तरफ़ देखकर) मैं तश्तरी को रेडियो के पीछे छिपा दूँगा। (ज़ोर से) अभी आता हूँ नीनी...ज़रा रुको।

    कोको—आओ, नीनी। अंदर आ जाओ। (नीनी अंदर आता है।)

    नीनी—दरवाज़ा खोलने में इतनी देर क्यों लगाई?

    कोको—कुछ ख़ास नहीं...मैंने अभी-अभी नाश्ता किया और मुँह धोने लगा था। बोलो, सुबह-सुबह कैसे आना हुआ?

    नीनी—क्या? यह मत कहना कि तुम भूल गए थे। परीक्षा के बारे में रेडियो पर ख़ास सूचना आने वाली है।

    कोको—लेकिन तुम्हारे घर भी तो रेडियो है।

    नीनी—वह ख़राब है। इसीलिए सोचा तुम्हारे रेडियो पर सुनूँगा।

    (नीनी गोल मेज़ के पास बैठ जाता है।)

    नीनी—रेडियो उठाकर यहीं ले आओ ताकि हम आराम से लेटे-लेटे सुन सकें।

    हिंदवी

    कोको—नीनी हमारे रेडियो में भी कुछ ख़राबी है।

    नीनी—आओ, कोशिश करके देखें। मैं उठाकर ले आता हूँ।

    (नीनी अलमारी की तरफ़ जाने लगता है।)

    कोको—नहीं, नहीं। नीनी, इसे मत छूना। छुओगे तो करंट लगेगा। (नीनी रुक जाता है।)

    नीनी—मैंने तो इसे छू ही लिया था। भई, मैं वह ख़बर ज़रूर सुनना चाहता हूँ। तिन सू के घर जाता हूँ। तुम आओगे?

    कोको—नहीं। अच्छा फिर मिलेंगे।

    (नीनी तेज़ी से बाहर निकल जाता है।)

    कोको—(गहरी साँस लेकर) बाल-बाल बचे। अब चलकर नाश्ता किया जाए। मेरे पेट में चूहे दौड़ने लगे हैं।

    (कोको तश्तरी उठाकर मेज़ के पास आता है। एक रोटी उठाकर खाने लगता है, तभी दरवाज़े पर दस्तक सुनाई देती है।)

    कोको—(तश्तरी नीचे रखकर) जाने अब कौन आ टपका।

    मिमि—कोको, दरवाज़ा खोलो। मैं हूँ मिमि।

    कोको—बाप रे। यह तो मिमि है। उसे चावल की रोटियाँ मेरी ही तरह बहुत अच्छी लगती हैं और वह हमेशा भूखी होती है। मुझे रोटियाँ छिपा देनी चाहिए। लेकिन कहाँ? वह तो कुछ खाने की चीज़ ढ़ूँढ़ने के लिए सारे कमरे की तलाशी लेगी।

    मिमि—(फिर दरवाज़ा खटखटाकर) कोको, दरवाज़ा खोलो न...इतनी देर क्यों लगा रहे हो?

    कोको—कहाँ छिपाऊँ? कहाँ छिपाऊँ? (कमरे के चारों तरफ़ देखकर) ठीक, इस फूलदान के अंदर छिपा दूँ।

    (कोको फूलदान में तश्तरी रखकर दरवाज़ा खोलता है। मिमि कागज़ में लिपटा बंडल उठाए कमरे में आती है।)

    मिमि—दरवाज़ा खोलने में इतनी देर क्यों कर दी?

    कोको—मैंने अभी-अभी नाश्ता किया था और मुँह धोने लगा था। आओ बैठो।

    (कोको और मिमि मेज़ के इर्द-गिर्द बैठते हैं।)

    मिमि—मुझे अभी-अभी तुम्हारे माता-पिता मिले। तुम्हारी माताजी ने कहा कि तुम्हारे लिए चावल की कुछ रोटियाँ रखी हैं। मैंने सोचा...

    कोको—चावल की रोटियाँ? हाँ थीं तो। लेकिन मैंने सब खा लीं।

    मिमि—एक भी नहीं बची?

    कोको—सॉरी मिमि, मैंने सब खा लीं। (हाथ से पेट को मलते हुए) पेट एकदम भर गया है। लगता है आज तो दुपहर का खाना भी नहीं खाया जाएगा।

    मिमि—बहुत बुरी बात मेरी माँ ने केले के पापड़ बनाए थे। मैंने सोचा तुम्हारे साथ बाँटकर खाऊँगी। मैं चार पापड़ लाई हूँ। दो तुम्हारे लिए, दो अपने लिए। सोचा था तुम्हारी चावल को रोटियाँ और मोटे पापड़, दोनों का बढ़िया नाशता रहेगा।

    (मिमि काग़ज़ का बंडल खोलती है और पापड़ निकालती है। वह उन्हें एक तश्तरी में डालकर मेज़ पर रखती है।)

    मिमि—गर्मा-गर्म हैं और स्वादिष्ट भी। तुम्हारी भी क्या बदकिस्मती है कि तुम्हारा पेट बिल्कुल भरा हुआ है और तुम कुछ भी नहीं खा सकते।

    कोको—(पापड़ देखकर होंठों पर जीभ फेरकर, स्वगत) मैंने बड़ी ग़लती की जो उसे बताया कि मेरा पेट भरा हुआ है। लेकिन मैं समझता हूँ कि वह चारों पापड़ तो खा नहीं सकती। शायद दो मेरे लिए छोड़ जाए।

    मिमि—(एक पापड़ उठाकर) क्या इन्हें निगलने के लिए चाय है?

    कोको—हाँ, हाँ, अलमारी पर है। मैं ले आता हूँ।

    (कोको चाय की केतली और दो कप उठा लाता है। मिमि एक कप में चाय डालती है।)

    मिमि—तुम तो चाय पिओगे नहीं। पेट भरा होगा।

    हिंदवी

    कोको—(स्वगत) मेरा पेट से गुड़गुड़ कर रहा है। भगवान करे मिमि को यह गुड़गुड़ न सुनाई दे।

    मिमि— (पापड़ खाते हुए) यह कैसी आवाज़ है?

    कोको—आवाज़? कैसी आवाज़?

    मिमि—हल्की-सी गड़गड़ाने की आवाज़। यह फिर हुई। सुना तुमने?

    कोको—यह...? हमारे घर में चूहा घुस आया है। वही यह आवाज़ करता है।

    (दरवाज़े पर दस्तक)

    कोको—कौन?

    तिन सू—मैं हूँ तिन सू।

    (कोको उठने लगता है।)

    मिमि—तुम बैठे रहो। आराम करो। तुम्हारा पेट बहुत भरा हुआ है। मैं खोलती है।

    (मिमि दरवाज़ा खोलती है। तिन सू गेंदे के फूलों का गुच्छा लिए आता है।)

    तिन सू—आहा! मिमि भी यहाँ है।

    मिमि—आओ तिन सू।

    तिन सू—(मेज़ के पास जाकर) हैलो कोको। क्या बात है? तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है क्या?

    कोको—हैलो तिन सू।

    (मिमि और तिन सू मेज़ के पास बैठते हैं।)

    मिमि—(तिन सू से) वह ठीक हैं। बस, नाश्ते में चावल की रोटियों ज़्यादा खा ली है।

    तिन सू—(केले के पापड़ों की तरफ़ देखकर) आहा, केले के पापड़!

    मिमि—मैं कोको के लिए भी ले आई थी। लेकिन चूँकि उसका पेट एकदम भरा हुआ है, तुम इन्हें ख़त्म करने में मेरी मदद करो।

    तिन सू—नेकी और पूछ-पूछ? तुम्हारी माँ गाँव में सबसे बढ़िया पापड़ बनाती है।

    (तिन सू एक पापड़ उठाकर खाने लगता है। मिमि उसके लिए कप में चाय डालती है।)

    मिमि—(कप देकर) यह लो चाय के साथ खाओ।

    तिन सू—(चाय की चुस्की लेकर होंठों पर जीभ फिराकर) बहुत बढ़िया चाय है। मेरी ख़ुशक़िस्मती जो इस वक़्त यहाँ आ गया। (स्वगत) तुम्हारी ख़ुशक़िस्मती और मेरी बदक़िस्मती।

    (मिमि और तिन सू एक-एक पापड़ खा लेते हैं और मिमि दूसरा उठाती है।)

    मिमि—यह लो तिन सू। एक और खाओ।

    तिन सू—नहीं, मेरे लिए तो एक ही काफ़ी है।

    मिमि—आधा तो ले लो। दूसरा आधा में खा लूँगी। एक कोको के लिए रहा। शाम को खा लेगा।

    तिन सू—तुम ज़ोर डालती हो तो ले लेता हूँ।

    कोको— (स्वगत) चलो, एक तो मेरे लिए छोड़ रहे हैं। मैं भूख से मरा जा रहा हूँ।

    तिन सू—यह आवाज़ कैसी है?

    मिमि—यहाँ एक बड़ा चूहा घुस आया है। कोको कहता है, वही यह आवाज़ करता है।

    तिन सू—ऐसा लगा कि किसी का पेट भूख से गुड़गुड़ा रहा है।

    (तिन सू और मिमि पापड़ ख़त्म करते हैं)

    मिमि—अच्छा, ये फूल कैसे हैं?

    तिन सू—ओह! मैं तो भूल ही गया था। मेरी माँ ने कहा है कि कोको की माँ ने कल दुकान से एक फूलदान ख़रीदा था। उन्होंने ये फूल उस फूलदान में रखने के लिए भेजे हैं। (इधर-उधर देखता है। उसे अलमारी के ऊपर फूलदान दिखाई देता है।) वह रहा फूलदान, अलमारी पर।

    मिमि—मुझे दो। मैं इन्हें फूलदान में रख आती हूँ।

    (तिन सू उसके हाथ में फूल देता है। वह उठने लगती है।)

    कोको—नहीं, नहीं मिमि।

    मिमि—तुमने तो मुझे डरा ही दिया। क्या बात है?

    कोको—ये फूल....ये फूल। मेरी माँ को इस फूल से एलर्जी है। जब भी वह यह फूल देखती हैं उनके जिस्म में फुँसियाँ निकल आती हैं।

    तिन सू—ओह, मुझे इस बात का पता नहीं था। ख़ैर में इन फूलों को वापस ले जाऊँगा।

    कोको—(चैन की साँस लेकर, स्वगत) मुझे अपनी रोटियों को बचाने के लिए कितने झूठ बोलने पड़ेंगे।

    (दरवाज़े पर दस्तक)

    कोको—कौन?

    उ बा तुन—मैं हूँ। दुकान का मैनेजर उ बा तुन।

    मिमि—(कोको से) तुम मत उठो को को। मैं खोलती हूँ दरवाज़ा।

    (ज़ोर से) अभी आई उ वा तुन चाचा।

    (उ बा तुन नीला फूलदान लिए आता है)

    उ बा तुन—हैलो बच्चो (मेज़ की तरफ़ देखकर) लगता है छोटी-मोटी पार्टी चल रही है।

    मिमि—आओ चाचा, आओ।

    (उ बा तुन मेज़ के पास बैठ जाता है)

    मिमि—चाय लेंगे आप?

    उ बा तुन—कोई एतराज़ नहीं। बहुत-बहुत शुक्रिया!

    (मिमि अलमारी की तरफ़ जाकर कप ले आती है और चाय डालकर उ बा तुन को देती है।)

    उ बा तुन—(कप से चुस्की लेकर) क्या मज़ेदार चाय है। खुश़बूदार ताज़गी लाने वाली।

    तिन सू—चाचा, आपने नाशता कर लिया है?

    उ बा तुन—अभी किया नहीं। मैं सोच रहा था, किसी चाय की दुकान पर रुककर कर लूँगा ।

    मिमि—चाय की दुकान पर जाने की क्या ज़रूरत? आप यह पापड़ ले सकते हैं।

    उ बा तुन—लेकिन...मैं तुममें से किसी का हिस्सा नहीं मारना चाहता।

    तिन सु—कोई बात नहीं चाचा। हम सबके पेट तो भर गए हैं।

    (उँगली से गले को छूता है।)

    उ बा तुन—बहुत-बहुत शुक्रिया। अरे, यह आवाज़ कैसी है?

    तिन सू—यह चूहे की आवाज़ है। अक्सर यह आवाज़ करता है।

    उ बा तुन—मुझे लगा किसी का पेट भूख से कुलबुला रहा है।

    (उ बा तुन पापड़ उठाकर खाने लगता है।)

    उ बा तुन—कोको, तुम आज बहुत चुप हो। तबियत तो ठीक है?

    कोको—कुछ नहीं चाचा। मैं बिल्कुल ठीक है।

    मिमि—उसका पेट बहुत भरा हुआ है। नाशता बहुत डटकर किया है।

    (उ बा तुन पापड़ ख़त्म करके हाथ से मुँह पोंछता है।)

    उ बा तुन—कोको, तुम्हारी माँ हमारी दुकान से एक फूलदान लाई थीं (इधर-उधर देखकर) हाँ, वह रहा।

    कोको—क्यों? फूलदान का क्या करना है?

    उ बा तुन—तुम्हारी माँ ने नीला फूलदान माँगा था। उस वक़्त मेरे पास वह रंग नहीं था, इसलिए वह गुलाबी ही ले आई। उनके जाने के बाद मुझे एक नीला फूलदान मिल गया। मैं उसे बदलने आया है।

    (उ बा तुन अलमारी के पास जाकर गुलाबी फूलदान उठा लेता है और उसकी जगह नीला फूलदान रख देता है।)

    उ बा तुन—(कोको से) मुझे यक़ीन है, तुम्हारी माँ नीला फूलदान देखेंगी तो बहुत ख़ुश होंगी। अब मैं चलूँगा। शुक्रिया और गुडबाई।

    मिमि-तिन सु—गुडबाई चाचा।

    कोको—गुडबाई चाचा। (स्वगत) और गुडबाई मेरी चावल की रोटियो!

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    पी.औंग खिन

    पी.औंग खिन

    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 83)
    • रचनाकार : पी.औंग खिन
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022

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    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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