संपूर्ण
परिचय
कविता28
गीत25
ई-पुस्तक11
ग़ज़ल1
ऑडियो 1
वीडियो18
पत्र1
आलोचनात्मक लेखन2
निबंध2
उद्धरण14
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के निबंध
हमारे साहित्य का ध्येय
आज हमारे साहित्य को देश तथा साहित्यिकों के समाज में वह महत्व प्राप्त नहीं, जो उसे राजनीति के वायुमंडल में रहने वाले में, जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप से प्राप्त है। इसलिए हमारे देश के अधिकांश प्रांतीय साहित्यिक राजनीति से प्रभावित हो रहे हैं। यह सच है कि
रूप और नारी
आकाश की आत्मा सूर्य का खुला हुआ प्रकाश ही पृथ्वी के ससीम सहस्रों पादपों के अखिल जीवों में रूप की कमनीय कांति खोल देता, भावना को पार्थिव एक स्वर्गीय कुछ कर देता, भीतर से उभाड़कर भूमा के प्रशस्त ज्योतिर्मंडल में ले आता है। उस स्वतंत्र प्रकाश के स्नेह-स्पर्श
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere