सैम्युअल टेलर कॉलरिज की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 9

कल्पना का विचार मैं प्राथमिक तथा परवर्ती के रूप में करता हूँ। प्राथमिक कल्पना को मैं समस्त मानवीय ज्ञान की जीवंत शक्ति और प्रमुख कारक, तथा अनंत 'अहम् अस्मि' में होने वाली शाश्वत सृजन-प्रक्रिया की शांत मन में आवृत्ति मानता हूँ। द्वितीयक कल्पना को मैं प्राथमिक कल्पना की प्रतिध्वनि मानता हूँ, जो चेतन संकल्प-शक्ति के साथ अस्तित्त्वशील है, और फिर भी प्राथमिक कल्पना से कारकता के प्रकार में तादात्म्यशील होती है, और केवल मात्रा में तथा क्रियाविधि में उससे भिन्न होती है। पुनः सृजन के निमित्त यह विघटित करती है, प्रसारित करती है तथा क्षय करती है; या जहाँ यह प्रक्रिया असंभव हो जाती है वहाँ भी यह प्रत्ययीकरण तथा एक करने के लिए संघर्ष को सदैव करती है। यह अनिवार्यतः सजीव होती है, वैसे ही जैसे सभी वस्तुएँ वस्तुओं के रूप में स्थिर और निर्जीव होती हैं।