महावीर प्रसाद द्विवेदी के संस्मरण
बाबू चिंतामणि घोष
भवो हि लोकाभ्युदयाय तादृशाम्—कालिदास सुख और दुःख के युग्म का अनुभव सभी को करना पड़ता है। कोई उससे बच नहीं सकता। यह संभव ही नहीं कि किसी को सदा एक ही अनुभव करना पड़े। हाँ, यह बात अवश्य है कि इस युग्म की अवस्थिति में न्यूनाधिकता रहती है। किसी को अपनी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere