महावीर प्रसाद द्विवेदी की संपूर्ण रचनाएँ
यात्रा वृत्तांत 4
आलोचनात्मक लेखन 1
निबंध 6
उद्धरण 2

हे जगदीश्वर, इस संसार में काले से भी काले कर्म करके जो लोग ललाट पर चंदन का सफ़ेद लेप लीपते हैं, उनकी भी गणना जब हम बड़े-बड़े धार्मिकों में की गई सुनाते हैं, तब हमारे मुँह से हँसी निकल ही जाती है।
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हे जगदीश, जो लोग कामिनी जनों की ओर घूरने ही के लिए देवालयों को सबेरे और सायंकाल जाते हैं, उन्हीं की सब कोई यदि प्रशंसा करे तो हाय! हाय! आस्तिकता अस्त हो गई समझनी चाहिए।
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