noImage

घनानंद

1673 - 1760 | दिल्ली

रीतिकालीन काव्य-धारा के महत्त्वपूर्ण कवि। रीतिमुक्त कवियों में से एक। आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा ‘साक्षात् रसमूर्ति’ की उपमा से विभूषित।

रीतिकालीन काव्य-धारा के महत्त्वपूर्ण कवि। रीतिमुक्त कवियों में से एक। आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा ‘साक्षात् रसमूर्ति’ की उपमा से विभूषित।

घनानंद की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 1

जानराय! जानत सबैं, असरगत की बात।

क्यौं अज्ञान लौं करत फिरि, मो घायल पर घात॥

हे सुजान! तुम मेरे मन की सभी बातें जानती हो। तुम जानती हो कि मैं घायल हूँ। घायल पर चोट करना अनुचित है, इसे भी तुम जानती होंगी, सुजानराय जो ठहरीं। फिर भी तुम मुझ घायल पर आघात कर रही हो, यह अजान की भाँति आचरण क्यों कर रही हो! तुम्हारे नाम और आचरण में वैषम्य है।

 

सवैया 21

कवित्त 25

सोरठा 2

 

वीडियो 3

This video is playing from YouTube

"दिल्ली" से संबंधित अन्य कवि

Recitation