पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कहानियाँ
झलमला
(एक) मैं बरामदे में टहल रहा था। इतने में मैंने देखा कि विमला दासी अपने आँचल के नीचे एक प्रदीप लेकर बड़ी भाभी के कमरे की ओर जा रही है। मैंने पूछा—क्यों री! यह क्या है? वह बोली—झलमला। मैंने फिर पूछा—इससे क्या होगा? उसने उत्तर दिया—नहीं जानते हो वाबू,
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere