पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंध
प्रेम और विवाह की समस्या
यह तो स्पष्ट है कि समाज की गति के साथ साहित्य भी गतिशील होता है। जो सच्चा साहित्यकार होता है, उसकी वाणी में युग की वाणी रहती है। ऐसे साहित्यकारों की रचनाओं में समस्त देश की आत्मा प्रस्फुट हो जाती है। उनके स्वर में देश की उच्चतम आकांक्षा की ध्वनि निकलती
क्यों लिखूँ?
मैंने यह सोचा है कि अब मैं अपनी बातें लिखा करूँ। उनमें मेरे कर्म-जगत् के साथ मेरे भाव जगत् की भी चर्चा हो। सभी के पास यही तो एक विषय है जो दूसरों के लिए अपूर्व है। मेरा जीवन मेरा ही जीवन है। मैंने जो कुछ अनुभव किया है, वह अन्य के लिए संभव नहीं है। क्षुद्र