समली और निसंक भख, अबंक राह म जाह।
पण धण रौ किम पेखही, नयण बिणट्ठा नाह॥
हे चील! और दूसरे अंगों को तो तू भले ही निःसंकोच खा किंतु नेत्रों की तरफ़ मत जा। क्योंकि यदि तू प्राणनाथ को नेत्र-विहीन कर देगी तो वे अपनी पत्नी का सती होने का प्रणपालन कैसे देखेंगे।
सूतो देवर सेज रण, प्रसव अठी मो पूत।
थे घर बाभी बाँट थण, पालौ उभय प्रसूत॥
देवरानी अपनी जेठानी से कहती है कि हे भावज! इधर तो मेरे पुत्र उत्पन्न हुआ है और उधर आपके देवर रणशय्या पर सो गए हैं। अब यही उचित है कि आप अपना एक-एक स्तन मेरे व आपके शिशु में बाँट कर दोनों को पालें; मैं सती होऊँगी।
जे खल भग्गा तो सखी, मोताहल सज थाल।
निज भग्गा तो नाह रौ, साथ न सुनो टाल॥
हे सखी! यदि शत्रु भाग गए हों तो मोतियों से थाल सजा ला (जिससे प्राणनाथ की आरती उतारूँगी) और यदि अपने ही लोग भाग चले हों तो पति का साथ मत बिछुड़ने दे अर्थात् मेरे शीघ्र सती होने की तैयारी कर।
सूरातन सूराँ चढ़े, सत सतियाँसम दोय।
आडी धारा ऊतरै, गणे अनळ नू तोय॥
शूरवीरों में वीरत्व चढ़ता है और सतियो में सतीत्व। ये दोनों एक समान है। शूरवीर
तलवार से कटते हैं और सती अग्नि को जल समझती है।
जमला ऐसी प्रीत कर, जैसी हिंदू जोय।
पूत पराये कारणे, जलबल कोयला होय॥
प्रीति तो ऐसी करनी जैसी कि एक हिन्दू स्त्री करती है। वह परजाए पुरुष (अपने पति) के लिये समय पड़ने पर स्वयं को राख बना देती है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere