वसंत-पंचमी निराला की स्मृतियों का समारोह
अभी न होगा मेरा अंत अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसंत अभी न होगा मेरा अंत हरे-हरे ये पात, डालियाँ, कलियाँ कोमल गात मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, अपने
राजकमल चौधरी
संगीतज्ञों के संस्मरण (भूमिका)
पंडित भास्कर बुआ भखले को भी संगीत प्रचार की बड़ी अभिलाषा थी और उन्होंने सन् 1911 ईस्वी में पूना में भारत गायन समाज नामक स्कूल खोला जिसमें स्वयं पंडित जी और पंडित अष्टेकर विद्यार्थियों को सिखाते थे। पंडित जी का स्वर्गवास होने के बाद भी इनके शिष्यों न स्कूल
विलायत हुसैन ख़ाँ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere