दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : दो
30 अगस्त, ’31 ‘राजपूताना जहाज़’ जहाज़ पर मर्यादा प्रायः भंग हो गई है। 1927 में मैं आया था तो कपड़ों का स्वांग रचना पड़ा था। रात के कपड़े, दिन के कपड़े, पूरा झमेला था। घंटा भर तो प्राय: कपड़े बदलने में ही लगता था। धोती कुर्ता पहनना तो मानो गुनाह था। अब
घनश्यामदास बिड़ला
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere