गणेश पर दोहे

भगवान गणेश की स्तुति

में रचित काव्य-रूपों का संचयन।

बानी जू के बरन जुग सुबरनकन परमान।

सुकवि! सुमुख कुरुखेत परि हात सुमेर समान॥

केशवदास

लसत सरस सिंधुर-बदन, भालथली नखतेस।

विघनहरन मंगलकरन, गौरीतनय गनेस॥

कवि रसनिधि गणेश जी की वंदना करते हुए कहते हैं कि सुंदर हाथी के मुख वाले, मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए हुए, विघ्नों का नाश करने वाले, कल्याण करने वाले पार्वती-पुत्र गणेश जी महाराज सुशोभित हो रहे हैं।

रसनिधि

एक-रदन विद्या-सदन, उमा-नँदन गुन-कोष।

नाग-बदन मोदक-अदन, बिघन-कदन हर दोष॥

मोहन

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere