डर पर गीत

डर या भय आदिम मानवीय

मनोवृत्ति है जो आशंका या अनिष्ट की संभावना से उत्पन्न होने वाला भाव है। सत्ता के लिए डर एक कारोबार है, तो आम अस्तित्व के लिए यह उत्तरजीविता के लिए एक प्रतिक्रिया भी हो सकती है। प्रस्तुत चयन में डर के विभिन्न भावों और प्रसंगों को प्रकट करती कविताओं का संकलन किया गया है।

फिर जला लोहबान

देवेंद्र कुमार बंगाली

अपने ही इर्द-गिर्द

देवेंद्र कुमार बंगाली

सोच रहा हूँ

देवेंद्र कुमार बंगाली

धुँधलका

देवेंद्र कुमार बंगाली

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere