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मृत्यु पर गीत

मृत्यु शब्द की की व्युत्पत्ति

‘म’ धातु में ‘त्यु’ प्रत्यय के योग से से हुई है जिसका अभिधानिक अर्थ मरण, अंत, परलोक, विष्णु, यम, कंस और सप्तदशयोग से संयुक्त किया गया है। भारतीय परंपरा में वैदिक युग से ही मृत्यु पर चिंतन की धारा का आरंभ हो जाता है जिसका विस्तार फिर दर्शन की विभिन्न शाखाओं में अभिव्यक्त हुआ है। भक्तिधारा में संत कवियों ने भी मृत्यु पर प्रमुखता से विचार किया है। पश्चिम में फ्रायड ने मनुष्य की दो प्रवृत्तियों को प्रबल माना है—काम और मृत्युबोध। इस चयन में प्रस्तुत है—मृत्यु-विषयक कविताओं का एक अद्वितीय संकलन।

खिली थी, झर गई बेला

देवेंद्र कुमार बंगाली

मरण-त्योहार

गोपालदास नीरज

मरा हूँ हज़ार मरण

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

तू धूल भरा ही

महादेवी वर्मा

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere