गुण है, जिसके द्वारा मनुष्य यथेष्ट ऊर्जा या साधन के अभाव में भी भारी कार्य कर बैठता है अथवा विपत्तियों या कठिनाइयों का मुक़ाबला करने में सक्षम होता है। इस चयन में साहस को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
छोटे क़द और दुबले शरीरवाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कोनों में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र समझदारी लेकर जिस दिन पहले-पहले मेरे पास आ उपस्थित हुई थी तब से आज तक एक युग का समय बीत चुका है। पर जब कोई जिज्ञासु उससे इस संबंध में प्रश्न कर बैठता
सन् 1908 ई. की बात है। दिसंबर का आख़ीर या जनवरी का प्रारंभ होगा। चिल्ला जाड़ा पड़ रहा था। दो-चार दिन पूर्व कुछ बूँदा-बाँदी हो गई थी, इसलिए शीत की भयंकरता और भी बढ़ गई थी। सायंकाल के साढ़े तीन या चार बजे होंगे। कई साथियों के साथ मैं झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर
"अरे सुल्हड़, ले उपला, ज़रा सी आग तो ले आ!" माँ की आज्ञा उसके लिए वेद वाक्य थी, उपला लेकर वह आग लेने निकल पड़ा, पर घर के द्वार से निकलते-न-निकलते उसकी विचारधारा आग और उपले से हटकर किसी दूसरी ओर बदल गई। उसके पैर अपना काम करते रहे और मस्तिष्क अपना,
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