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उदास दिनों की पूरी तैयारी

उदास दिनों की पूरी तैयारी

शब-ओ-रोज़ छत पर जूठा था अमरूद। एक मिट्टी का दिया जिसमें सुबह, सोखे हुए तेल की गंध आती थी। कंघी के दांते टूट गए। आईने पर साबुन के झाग के सूखे निशान हैं। दहलीज़ पर अख़बारों का गट्ठर। चिट्ठीदान में नहीं

निशांत कौशिक