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सोने की एक लता तुलसी बन

sone ki ek lata tulsi ban

केशवदास

अन्य

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केशवदास

सोने की एक लता तुलसी बन

केशवदास

सोने की एक लता तुलसी बन क्यौं करणों सु बुद्धि सकै छ्वै।

केशवदास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्रीफल से ब्बै॥

फूलि सरोज रह्यो तिन ऊपर रूप निरूपत चित्त चलै च्वै।

तापर एक सुवा शुभ तापर खेलत बालक खंजन के द्वै॥

(कोई सखी कृष्ण से कहती है कि) मैंने वृन्दावन में एक सोने की लता (नायिका) देखी है। उसका कैसे वर्णन करूँ, बुद्धि वहाँ तक पहुँचती ही नहीं। उस लता में काम का भी मन हरने वाले दो बेल के से फल (कुच) फले हैं। उन पर एक कमल (मुख) फूला है जिसका सौंदर्य निरूपण करते चित्त द्रवित होता है। उस कमल पर एक सुवा (नाक) है, और खंजन के दो बालक (नेत्र) खल रहा हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रिया-प्रकाश (पृष्ठ 185)
  • संपादक : लाला भगवान 'दीन'
  • रचनाकार : केशवदास
  • प्रकाशन : संजय बुक सेंटर, गोलघर, वाराणसी
  • संस्करण : 1981

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