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रावरे दोष न पायँन को

rawre dosh na payann ko

तुलसीदास

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तुलसीदास

रावरे दोष न पायँन को

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    रावरे दोष पायँन को, पगधूरि को भूरि प्रभाउ महा है।

    पाहन तें वन-वाहन काठ को कोमल है, जल खाइ रहा है॥

    पावन पायँ पखारि कै नाव चढ़ाइ हौं आयसु होत कहा है।

    तुलसी सुनि केवट के बर वैन हँसे प्रभु जानकी ओर हहा है॥

    केवट कहता है कि हे रामजी! आपके पैरों का दोष नहीं है बल्कि यह आपके पैरों की धूल का बहुत बड़ा प्रभाव है। पत्थर से लकड़ी की नाव कोमल है तिस पर वह रात-दिन पानी खा रहा है। मैं आपके पैरों को धोकर नाव पर चढ़ाऊँगा, कहिए क्या आज्ञा हो रही है? तुलसी कहते हैं कि केवट की चतुराई की बात सुनकर राम जानकी की ओर देखकर ठठाकर हँसे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 29)
    • संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
    • रचनाकार : तुलसीदास
    • प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
    • संस्करण : 1999

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