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साधो भक्ति नहीं औसान

sadho bhakti nahin ausan

संत जगजीवन

अन्य

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संत जगजीवन

साधो भक्ति नहीं औसान

संत जगजीवन

और अधिकसंत जगजीवन

    साधो भक्ति नहीं औसान।

    कहन सुनन को बहुत हैं, हिये ज्ञान नाहिं समान॥

    सरत नहिं कछु करत औरै, पढ़त बेद पुरान।

    और को समुझाइ सिखवत, आपु फिरत भुलान॥

    करत पूजा तिलक दैकै, प्रात करि अस्नान।

    भ्रमत है मन हाथ नाहीं, नाहिं थिर ठहरान॥

    तीर्थ ब्रत तप करहिं बहु बिधि, होम जग जप दान।

    याहि माँ पचि रहत निसि दिन, धर्यो नाहीं ध्यान॥

    सीस केस बढ़ाइ रज अंग लाइ, भे निर्बान।

    अंत तत्वं नाहिं अजपा, भ्रमत फिरे निदान॥

    पहिरि माला फूल इत उत, बाद जहँ तहँ ठानि।

    नर्क प्रापत भये तेहू, बिरथा जनम सिरान॥

    सहज जग रहि सुरति अंतर, भजन सो परमान।

    जगजीवन ते अमर प्रानी, तेहिं समान आन॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जगजीवन साहब की बानी, दूसरा भाग (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : जगजीवन साहब
    • प्रकाशन : बेलवेडरी स्टीम प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1909

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