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साधो भाई म्हें हूँ नेड़ै सूं नेड़ौ

sadho bhai mhen hoon neDai soon neDau

बाबा रामदेव

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बाबा रामदेव

साधो भाई म्हें हूँ नेड़ै सूं नेड़ौ

बाबा रामदेव

और अधिकबाबा रामदेव

    साधो भाई म्हें हूँ नेड़ै सूं नेड़ौ।

    दूर जांणै ज्यांनै दुरमत कहिजै, पावै कष्ट घणैरौ,

    साधो भाई म्हें हूँ नेड़े सूं नेडौ॥

    पाँच तीन जो कहिजै भेद नईं जांणे म्हारौ।

    इण सूँ नेड़ी रहूँ हरदम, इण सह नै प्रेरौ॥

    मन बुद्धि चित्त अहंकार चारूं, म्हारो रूप नई हेरौ।

    साथ रह इयां नै नई सूझै, हुय रयौ अंधेर घणैरौ॥

    सबसूं पैलां म्हें इक हुतौ, पछै हुयौ है बखेड़ौ।

    सगळा समेट एक में करलौ, सगळौ रूप म्हारौ॥

    आपौ आप में जग सगळौ, अरस-परस करलौ म्हारौ।

    सकळ संसार आंख थकां आंधौ, भेद बीजौ संतां रौ॥

    सही कर जांणौ साधो, थांरौ चेतन नीं है म्हांसूं न्यारौ।

    केवै रांमदेव सुणौ भाई साधो, निज अवतार पतियारौ॥

    हे साधुओ! मैं आपके निकटतम हूँ; जो लोग मुझे अपने आप से दूर समझते हैं उन्हें दुर्मति वाले समझो। ऐसे अज्ञानी लोग अधिकाधिक कष्ट पाते हैं। वास्तविकता तो यह है कि संतो! मैं तुम्हारे सर्वाधिक समीप हूं।

    पाँचों इंद्रियाँ और तीनों गुण मेरा रहस्य नहीं जानते। फिर भी मैं सदैव इन से भी अधिक समीप हूँ और इन सभी का प्रेरक हूँ।

    मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार, ये चारों भी मेरे स्वरूप को नहीं समझते जबकि मैं इनके साथ रहता हूँ। परंतु अज्ञान रूपी अंधकार के कारण ये मुझे नहीं देख पाते हैं।

    सबसे पहले मैं ही विद्यमान था और केवल एक था। सृष्टि का प्रपंच बाद में हुआ। तुम सृष्टि के सकल पदार्थों, समस्त प्राणियों को एक में समाविष्ट समझो क्योंकि यह संपूर्ण संसार मेरा ही रूप है।

    मैं जगत् के समस्त प्राणियों में हूँ और जगत् के सभी प्राणी मुझ में हैं। तुम अपने आप में ही मेरा प्रत्यक्ष दर्शन करो। यह माया जनित तथा माया ग्रसित संसार आँखों के होते हुए भी आत्म ज्ञान के अभाव में अंधा है; लेकिन ज्ञानी लोग मेरा स्वरूप समझते हैं।

    हे संतो! इसी आत्मतत्त्व को मेरा सही स्वरूप मानो। तुम्हारी जीवात्मा मुझ से भिन्न नहीं है। रामदेवजी कहते हैं कि हे साधुओ,अपने का ही विश्वास करो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 116)
    • संपादक : सोनाराम बिश्नोई
    • रचनाकार : बाबा रामदेव
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
    • संस्करण : 2015

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