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नाम सुमिरु मन मुरुख अनारी

naam sumiru man murukh anaarii

दूलनदास

अन्य

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दूलनदास

नाम सुमिरु मन मुरुख अनारी

दूलनदास

और अधिकदूलनदास

    नाम सुमिरु मन मुरुख अनारी।

    छिन-छिन आयु घटत जातु है, समुझि गहहु सत डोरि संभारी॥

    यह जीवन सुपने को लेखा, का भूलसि झूठी संसारी।

    अंत काल कोइ काम अइहै, मातु-पिता-सुत-बंधू-नारी॥

    दिवस चारि को जगत सगाई, आख़िर नाम सनेह करारी।

    रखना सत्त नाम रटि लावहु, उघरि जाइ तोरि कपट किवारी॥

    नाम कि डोरि पोढ़ि धरनी धरु, उलटि पवन चढ़ु गगन अटारी।

    तहँ सत साहिब अलख रूप वै, जन दूलन करु दरस दिदारी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूलनदासजी की बानी (पृष्ठ 1)
    • संपादक : अधम
    • रचनाकार : दूलनदास
    • प्रकाशन : बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग
    • संस्करण : 1931

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