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कलि की रीति सुनहु रे भाई

kali ki riti sunahu re bhai

संत जगजीवन

अन्य

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संत जगजीवन

कलि की रीति सुनहु रे भाई

संत जगजीवन

और अधिकसंत जगजीवन

    कलि की रीति सुनहु रे भाई।

    माया यह सब है सांईं की, आपुनि सब केहु गाई॥

    भूले फूले फिरत आय पर, केहु के हाथ आई।

    जो है जहाँ तहाँ हीं है सो, अंत काल चाले पछिताई॥

    जहाँ होय नाम कै चरचा, तहाँ आइ के और चलाई।

    लेखा जोखा करहिं दाम का, पड़े अघोर नरक महँ जाई॥

    बूड़हिं आपु औरान कहँ बोरहिं, करि झूठी बहुतक बकताई।

    जगजीवन मन न्यारे रहिये, सत्तनाम तें रहु धुनि लाई॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जगजीवन साहब की बानी, पहला भाग (पृष्ठ 37)
    • रचनाकार : जगजीवन साहब
    • प्रकाशन : बेलवेडरी स्टीम प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1909

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