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कछु मन तुम सुधि राखौ वा दिन की

kachhu man tum sudhi raakhau va din kii

चरनदास

अन्य

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चरनदास

कछु मन तुम सुधि राखौ वा दिन की

चरनदास

और अधिकचरनदास

    कछु मन तुम सुधि राखौ वा दिन की।

    जा दिन तेरी देह छुटैगी, ठौर बसौगे बन की॥

    जिनके संग बहुत सुख कीन्हें, मुख ढकि ह्वै हैं न्यारे।

    जम का त्रास होय बहु भांती, कौन छुटावन हारे॥

    देहरी लौं तेरी नारि चलैगी, बड़ी पौरि लों माई।

    मरघट लौ सब बीर भतीजे, हंस अकेलो जाई॥

    द्रव्य गड़े अरु महल खड़े ही, पूत रहैं घर माहीं।

    जिनके काज पचे दिन राती, सो सँग चालत नाहीं॥

    देव पितर तेरे काम आवैं, जिनकी सेवा लावै।

    चरनदास सुकदेव कहत है, हरि बिन मुक्ति पावै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 167)
    • रचनाकार : चरनदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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