Font by Mehr Nastaliq Web

जौ लों मन तत्तुहिं नहिं पकरै

jau lon man tattuhin nahin pakarai

धरनीदास

अन्य

अन्य

धरनीदास

जौ लों मन तत्तुहिं नहिं पकरै

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    जौ लों मन तत्तुहिं नहिं पकरै।

    तो लों कुमति किवार टूटै, दया नाहिं उघरै॥

    काहे के तीरथ बरत भटकि भ्रम, थाकि-थाकि थहरै।

    मंडप महजिद मुरति सुरति करि, धोखेहि ध्यान धरै॥

    काहे के अनत जिवन फल तोरै, का पचि अनल बरै।

    काहे के बल करि जल पर सोवै, भुइँ खनि खँदक परै॥

    दान विधान पुरान सुनै नित, तौ नहिं काज सरै।

    धरनी भवजल तत्तु नाव री, चढ़ि-चढ़ि भक्त तरै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए