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मूंड मुंडायो मन मुड़ायो

moonD munDayo man muDayo

जांभोजी

अन्य

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जांभोजी

मूंड मुंडायो मन मुड़ायो

जांभोजी

मूंड मुंडायो मन मुड़ायो, मोह अबखल दिल लोभी।

अंदर दया नहीं सुर काने, निंद्या हड़ै कसोभी।

गुरुगत छूटी टोट पड़ैला, उनकी आवा एक पख सातो॥

वे करणी हूंता खूंधा।

असी सहस नव लाख भवैला कुंभी दोरै ऊंधा॥

तुमने अपना माथा तो मुंडाया है परंतु तुमने अपने मन को नहीं मुंडाया अर्थात् साधु होकर भी तुम्हारा मन तो विषयासक्त ही रहा, मन का मोह और लालची हृदय तेरा नाश करने वाला है। तेरे हृदय में दया नहीं है और ही कभी तुमने अपने कानों से देवताओं का गुण—कीर्तन ही सुना है। तू दूसरों की निंदा करता है यह तेरे लिए शोभनीय नहीं है। यदि गुरु की शरणागति छूट गई तो तुझे भारी हानि होगी, खोटे कर्म करने वाले की समस्त आयु व्यर्थ जाएगी, वह यमदूतों द्वारा रौंदा जाएगा। वह कुंभीपाक में बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप उल्टा लटकेगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : जाम्भोजी की वाणी (पृष्ठ 274)
  • रचनाकार : जाम्भोजी
  • प्रकाशन : Vikas Prakashan
  • संस्करण : 2001

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