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बह्मन पढ़ा है वेद कू

bahman paDha hai wed ku

मध्व मुनीश्वर

अन्य

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मध्व मुनीश्वर

बह्मन पढ़ा है वेद कू

मध्व मुनीश्वर

और अधिकमध्व मुनीश्वर

    बह्मन पढ़ा है वेद कू, समजा उसी के भेद कू।

    पूजे पयर के देव कू, पंडित ऐसा सब में भला।

    अंदर करे दिल पाक रे, सेवा ज़िकिर कू च्याख रे॥

    उपर लगावे ख़ाक रे, जोगी ऐसा सबमें भला।

    बांधे गले मो लिंग रे, जोगी ऐसा सब में भला॥

    फज़र किताबां खोलता, साची नसीहत बोलता।

    अपने अमलबीच डोलता, क़ाज़ी ऐसा सब में भला॥

    हुसियार अपने-अपने बक्त रे, चढ़े बेहश्त का तख़्त रे।

    खुला है उसका बखत रे, मल्ला ऐसा सब में भला॥

    साहेब करता बंदा जुदा, समजा है दिल में वो ख़ुदा।

    फ़क़ीर हुवा है आप सुधा, जिंदा ऐसा सब में भला॥

    इस बात से माधोनाथ कहे, नहीं साईं का घर दूर है।

    नहीं दूर रे भरपूर है, जंगल फिरा तो सब में भला॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 390)
    • संपादक : काका साहेब कालेलकर
    • रचनाकार : मध्य मुनीश्वर
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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