योगेंद्र आहूजा के बेला
दो दीमकें लो, एक पंख दो
मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर पाने का मौक़ा दिया। मेरे लिए यह मौक़ा असाधारण तो नहीं, लेकिन कुछ दुर्लभ ज़रूर है। ल
1959 | बदायूँ, उत्तर प्रदेश
सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह प्रकाशित।
सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह प्रकाशित।