परख-निरख कर परमात्मा का रूप बार-बार देखो। वह 'हरि' भी कहलाता है और 'हर' भी। नर और सुर भी वह रहता है। अखिलांड भुवन में, जन-मन में, जलथल में, नभ में पवन, प्रकाश, चराचर जगत्, खग, नग, मृग, तरु, लताएँ, सब में वही सगुण-निर्गुण त्यागराज का आराध्य ईश्वर व्याप्त है।