सुमित्रानंदन पंत के निबंध
भारतीय संस्कृति क्या है
आज हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर रहे हैं, जब भिन्न-भिन्न देशों के लोग एक नवीन धरती के जीवन की कल्पना में बँधने जा रहे हैं। जब मनुष्य-जाति अपने पिछले इतिहास की सीमाओं का अतिक्रम कर नवीन मनुष्यता के लिए एक विशाल प्रांगण का निर्माण करने का प्रारंभिक प्रयत्न
शृंगार और अध्यात्म
भारतीय साहित्य परंपरा में शृंगार और अध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी न समझे जाकर परस्पर पूरक ही माने गए है और उनका पोषण, भाई-बहनों की तरह, एक ही साथ, एक ही रस तत्व द्वारा होता आया है। लोक दृष्टि से ये दोनों मूल्य भले ही विभक्त कर दिए गए हों—पर रहस्य, और कुछ
भाषा और संस्कृति
आजकल जो अनेक समस्याएँ हमारे देश के सामने उपस्थित हैं, उनमें भाषा का जश्न भी अपना विशेष महत्त्व रखता है। इधर पत्र-पत्रिकाओं में किसी न किसी रूप में इनकी चर्चा होती रहती है और इस संबंध में अनेक सुझाव भी देखने को मिलते हैं। इस प्रश्न के सभी विवादपूर्ण पहलू
कला का प्रयोजन : स्वांतःसुखाय या बहुजनहिताय
हमारे युग का संघर्ष आज केवल राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों ही में प्रतिफलित नहीं हो रहा है, वह साहित्य, कला तथा संस्कृति के क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुका है। यह एक प्रकार से स्वास्थ्यप्रद ही लक्षण है कि हम अपने युग की समस्याओं का केवल बाहरी समाधान ही
कला और संस्कृति
मैं स्वतंत्र भारत के नवयुवक कलाकारों का स्वागत करता हूँ। मैं उनकी आँखों में सौंदर्य के स्वप्न, उनके हृदय की धड़कन में संस्कृत भावनाओं का संगीत और उनके सुंदर मुखों पर मनुष्यत्व के गौरव की झलक देखना चाहता हूँ। आप बुद्धिजीवी तथा कलाकार है। आपका क्षेत्र
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere