आज मैं देश से बाहर हूँ, देश से दूर हूँ, परंतु मन सदा वहीं रहता है और इसमें मुझे कितना आनंद अनुभव होता है।
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यदि मातृभूमि के कल्याण के लिए मुझे जीवन भर कारागार में रहना पड़े, तब भी मैं अपना क़दम पीछे नहीं हटाऊँगा।
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जगत् में सब कुछ क्षण-भंगुर है, केवल एक वस्तु नष्ट नहीं होती और वह वस्तु है भाव या आदर्श, हमारे आदर्श ही हमारे समाज की आशा हैं।
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दुःख सहन किए बिना मनुष्य कभी भी हृदय के आदर्श के साथ अभिन्नता अनुभव नहीं कर सकता और परीक्षा में पड़े बिना मनुष्य कभी भी निश्चित रूप से नहीं बता सकता कि उसके पास कितनी शक्ति है।
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भक्ति और प्रेम से मनुष्य निःस्वार्थी बन सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है।