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श्रीनरेश मेहता

1922 - 2000 | शाजापुर, मध्य प्रदेश

हिंदी के समादृत कवि-कथाकार और आलोचक। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।

हिंदी के समादृत कवि-कथाकार और आलोचक। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।

श्रीनरेश मेहता की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 32

डायरी 1

 

उद्धरण 90

मनुष्य वह कोई हो; यही सोचता है कि परिवर्तन, बाधाएँ, अवरोध, पतन आदि सब दूसरों के लिए ही हैं।

व्यक्ति का मन भी अजीब है कि वह अस्वीकृति या निषेध की ओर ही भागता है।

दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दुःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।

मनुष्य मात्र को इतिहास और राजनीति नहीं एक कविता चाहिए।

स्त्री और सब कुछ भूल सकती है, परंतु विवाह के तत्काल बाद जो उसे एकांत-व्यवहार पति के द्वारा मिलता हे वह अमिट होता है।

पुस्तकें 3

 

वीडियो 3

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