श्रीनरेश मेहता की संपूर्ण रचनाएँ
कविता 32
डायरी 1
उद्धरण 90

मनुष्य वह कोई हो; यही सोचता है कि परिवर्तन, बाधाएँ, अवरोध, पतन आदि सब दूसरों के लिए ही हैं।
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दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दुःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।
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स्त्री और सब कुछ भूल सकती है, परंतु विवाह के तत्काल बाद जो उसे एकांत-व्यवहार पति के द्वारा मिलता हे वह अमिट होता है।
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