संत केशवदास की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 11
भजन भलो भगवान को, और भजन सब धंध।
तन सरवर मन हँस है, केसो पूरन चँद॥
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सतगुरु मिल्यो तो का भयो, घट नहिं प्रेम प्रतीत।
अंतर कोर न भींजई, ज्यों पत्थल जल भीत॥
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जगजीवन घट-घट बसै, करम करावन सोय।
बिन सतगुरु केसो कहै, केहि बिधि दरसन होय॥
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जेहि घर केसो नहिं भजन, जीवन प्रान अधार।
सो घर जम का गेह है, अंत भये ते छार॥
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केसो दुबिधा डारि दे, निर्भय आतम सेव।
प्रान पुरुष घट-घट बसै, सब महँ सब्द अभेव॥
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