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रेनर मारिया रिल्के

1875 - 1926

रेनर मारिया रिल्के की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 28

एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति प्रेम महसूस करना, शायद यह सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है, जो मनुष्यों को दी गई है। यही अंतिम संकट है। यह वह कार्य है जिसके लिए बाकी सभी कार्य मात्र एक तैयारी हैं।

उस कारण को ढूँढ़ो जो तुम्हारे भीतर लिखने की इच्छा पैदा करता है, झाँक कर देखो क्या उस कारण की जड़ें तुम्हारे हृदय की गहराइयों तक फैली हैं? और फिर अपने आप से स्वीकार करो कि यदि तुम्हें लिखने से रोका गया तो तुम जी नहीं पाओगे।

मैं इसे दो संबंधों के बीच की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी मानता हूँ। प्रत्येक एक-दूसरे के एकांत का प्रहरी हो।

आँखों का काम अब पूरा हुआ। अब जाओ और हृदय का काम करो, उन छवियों पर जो तुम्हारे भीतर हैं।

संवाद में दो तरह की स्वतन्त्रता सम्भव है। मेरे ख़्याल से यही दो सर्वोत्तम रूप हैं। एक तो यह कि किसी महत्त्वपूर्ण वस्तु से सीधे-सीधे साक्षात्कार करें। दूसरा रास्ता वह है जो रोज़मर्रा के जीवन में होता है। जैसे हम एक-दूसरे से मिलते हुए, एक-दूसरे के काम के बारे में बात करते हुए या मदद करते हुए (विनम्र शब्दों में) या प्रशंसा करते हुए आपस में संवाद करते हैं। पर किसी भी मामले में परिणाम का सामने आना ज़रूरी है। अगर कोई अपने सफलता के उपकरणों के बारे में बात नहीं करता तो इसका अर्थ यह नहीं कि हमारे आपसी विश्वास में कोई कमी है या उसकी बताने की इच्छा नहीं है या वह इस प्रसंग में पड़ना ही नहीं चाहता

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